चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक!
– माखनलाल चतुर्वेदी
हिन्दी साहित्य को जोशो-ख़रोश से भरी आसान भाषा में कवितायें देने वाले माखनलाल चतुर्वेदी जी का जन्म मध्यप्रदेश के होशंगाबाद ज़िले में चार अप्रैल 1889 को हुआ था। वो कवि होने के साथ-साथ पत्रकार भी थे| उन्होंने ‘प्रभा, कर्मवीर और प्रताप का सफल संपादन किया। 1943 में उन्हें उनकी रचना ‘हिम किरीटिनी’ के लिए उस समय का हिंदी साहित्य का सबसे बड़ा पुरस्कार ‘देव पुरस्कार’ दिया गया था। हिम तरंगिनी के लिए उन्हें 1954 में पहले साहित्य अकादमी अवार्ड से नवाज़ा गया। राजभाषा संविधान संशोधन विधेयक के विरोध में पद्मभूषण की उपाधी लौटाने वाले कवि ने 30 जनवरी 1968 को आख़िरी सांस ली।