आपने किसी शायरा के बारे में सुना है कि उसने कोई लिखित परीक्षा दी हो और उस परीक्षा में उन्हीं पर एक सवाल पूछा गया हो. जी हां ऐसा पाकिस्तान की मशहूर शायरा परवीन शाकिर के साथ हुआ था, जब उन्होंने 1982 में सेंट्रल सुपीरियर सर्विस की परीक्षा दी थी.
उन्होंने अपनी लेखन की शुरुआत में ग़ज़ल और नज़्म दोनों सूरतो में लिखना शुरू किया। इसके साथ साथ अखबारों में कॉलम लिखने में उनकी दिलचस्पी थी और अंग्रेजी अध्यापिका होने की वजह से अंग्रेजी पत्र -पत्रिकाओं में लिखना अच्छा लगता था।
जब उनकी पहली किताब छपी तो न सिर्फ बेस्ट सेलर का मुकाम हासील हुआ,बल्कि उनकी शायरी की खुश्बू उनके मुल्क में हर तरफ फैल गई।कच्ची उम्र के रूमानी जज़्बात को उन्होंने जिस तरह अपनी शायरी में पेश किया,यह अंदाज़ किसी और शायरों में ना पाया गया।
उनकी शायरी का यह आलम है कि उनकी पहली किताब ‘खुश्बू’ पाकिस्तान में लोग अपनी मंगेतर को देते है।उनकी और एक किताब को सदर-ए-पाकिस्तान की तरफ से ‘प्राइड ऑफ परफॉर्मेंस’ का अवॉर्ड भी मिला। उनकी शायरी का ट्रांसलेशन इंग्लिश और जापानी लेंग्वेज में भी किया गया।
“गए बरस की ईद का दिन क्या अच्छा था,
चाँद को देखके उसका चेहरा देखा था
फ़ज़ा में ‘किट्स’के लहजे की नरमाहट थी,
मौसम अपने रंग में ‘फ़ैज़’का मिश्रा था।
परवीन की एक करीबी दोस्त और एक शायरा शाहिदा हसन ने कभी किसी बात चीत में कहा था, “परवीन ने जिस सिद्दत और सच्चाई के साथ शायरी में अपनी शख्सियत और जज़्बात का इज़हार किया वह आप बीती से जग बीती बन गया।
“कमाल -ए-जब्त को खुद भी तो आजमाउंगी,
मैं अपने हाथ से उसकी दुल्हन सजाऊँगी।
1952 में जन्म हुआ,1976 में पहली किताब और 1994 में हमेशा के लिए खामोश हो गई।ज़िन्दगी का कितना छोटा सा सफर रहा।बहुत ही कम उम्र में लिखना शुरू किया,उनमे फ़ैज़ और फ़राज़ की ज़लक जरूर देखने को मिलती है।
“लड़कियों के सुख भी अजीब होते है और दुःख भी अजीब,
हँस रही है और काजल भीगता है साथ -साथ।”
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