प्यार की भाषाएँ – कुँवर नारायण

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मैंने कई भाषाओँ में प्यार किया है
पहला प्यार
ममत्व की तुतलाती मातृभाषा में…
कुछ ही वर्ष रही वह जीवन में :

दूसरा प्यार
बहन की कोमल छाया में
एक सेनेटोरियम की उदासी तक :

फिर नासमझी की भाषा में
एक लौ को पकड़ने की कोशिश में
जला बैठा था अपनी अँगुलियाँ :

एक परदे के दूसरी तरफ
खिली धुप में खिलता गुलाब
बेचैन शब्द
जिन्हें होठों पर लाना भी गुनाह था

धीरे धीरे जाना
प्यार की और भी भाषाएँ हैं दुनिया में
देशी-विदेशी

और विश्वास किया कि प्यार की भाषा
सब जगह एक ही है
लेकिन जल्दी ही जाना
कि वर्जनाओं की भाषा भी एक ही है :

एक-से घरों में रहते हैं
तरह-तरह के लोग
जिनसे बनते हैं
दूरियों के भूगोल…
अगला प्यार
भूली बिसरी यादों की
ऐसी भाषा में जिसमें शब्द नहीं होते
केवल कुछ अधमिटे अक्षर
कुछ अस्फुट ध्वनियाँ भर बचती हैं
जिन्हें किसी तरह जोड़कर
हम बनाते हैं
प्यार की भाषा

जन्म : 19 सितंबर 1927, फैजाबाद, उत्तर प्रदेश

भाषा : हिंदी

विधाएँ : कविता, कहानी, समीक्षा

मुख्य कृतियाँ

कविता संग्रह : चक्रव्यूह, तीसरा सप्तक, परिवेश : हम तुम, आत्मजयी, अपने सामने, कोई दूसरा नहीं, इन दिनों, वाजश्रवा के बहाने, हाशिये का गवाह

कहानी संग्रह : आकारों के आसपास

समीक्षा : आज और आज से पहले

अन्य : मेरे साक्षात्कार, साहित्य के कुछ अंतर्विषयक संदर्भ (साहित्य अकादेमी संवत्सर व्याख्यान)

अनुवाद : यूनानी कवि कवाफी और स्पानी कवि-कथाकार बोर्खेस की कविताओं के अनुवाद

सम्मान : हिंदुस्तानी अकादमी पुरस्कार, प्रेमचंद पुरस्कार, तुलसी पुरस्कार, केरल का कुमारन अशान पुरस्कार, व्यास सम्मान, शलाका सम्मान (हिंदी अकादेमी दिल्ली), उ.प्र. हिंदी संस्थान पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, कबीर सम्मान, पद्मभूषण

निधन : 15 नवंबर 2017, दिल्ली

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