मिली हवाओं में उड़ने की वो सज़ा यारो

मिली हवाओं में उड़ने की वो सज़ा यारोके मैं ज़मीन के रिश्तों से कट गया यारो वो बेख़याल मुसाफ़िर मैं रास्ता यारोकहाँ था बस में मेरे उसको रोकना यारो मेरे क़लम पे ज़माने की गर्द ऐसी थीके अपने बारे में कुछ भी न लिख सका यारो तमाम शहर ही जिसकी तलाश में गुम थामैं उसके … Read more

उस के होंटों पे

आते आते मिरा नाम सा रह गया उस के होंटों पे कुछ काँपता रह गया रात मुजरिम थी दामन बचा ले गई दिन गवाहों की सफ़ में खड़ा रह गया वो मिरे सामने ही गया और मैं रास्ते की तरह देखता रह गया झूट वाले कहीं से कहीं बढ़ गए और मैं था कि सच … Read more

वसीम बरेलवी

ज़रा सा क़तरा कहीं आज गर उभरता है समन्दरों ही के लहजे में बात करता है ख़ुली छतों के दिये कब के बुझ गये होते कोई तो है जो हवाओं के पर कतरता है शराफ़तों की यहाँ कोई अहमियत ही नहीं किसी का कुछ न बिगाड़ो तो कौन डरता है ज़मीं की कैसी विक़ालत हो … Read more

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