कमरे में धूप ~ कुंवर नारायण
हवा और दरवाज़ों में बहस होती रही,दीवारें सुनती रहीं।धूप चुपचाप एक कुरसी पर बैठीकिरणों के ऊन का स्वेटर बुनती रही। सहसा किसी बात पर बिगड़ करहवा ने दरवाज़े को तड़ सेएक थप्पड़ जड़ दिया ! खिड़कियाँ गरज उठीं,अख़बार उठ कर खड़ा हो गया,किताबें मुँह बाये देखती रहीं,पानी से भरी सुराही फर्श पर टूट पड़ी,मेज़ के हाथ … Read more