हम से पूछो कैसा है वो
शेर ग़ज़ल का लगता है वो
उन आँख़ों से मिल कर देख़ो
जिन आँख़ों में रहता है वो
आओ करें उस पेड़ से बातें
जंगल में भी तनहा है वो
चाहें भी तो हाथ न आए
तेज़ हवा का झोंका है वो
आया था जो बनके समंदर
साहिल साहिल प्यासा है वो
दुख़ में भी है चेहरा रौशन
मिट्टी में भी सोना है वो
‘नक़्श’ के बारे में सुनते हैं
रिश्तों का दीवाना है वो
नक़्श लायलपुरी
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