दीपाली अग्रवाल – चुनिन्दा शेर

तुम मुझे ऐसे मिलना
जैसे उफ़ुक पर धरती
और आसमान मिलते हैं,
हमारा इश्क़ शफ़्फ़ाफ़ होगा
सूरज की मानिंद

रंगों के सफ़र में ख़ुदरंग रहा कर
चलना है तो भीड़ से अलग चला कर

वो आस्मां के शिकंजे में आते रहे
नशेमन इधर बुलाता ही रहा

वाक़ई दिल में कुछ रहा न होगा
झगड़ता अगर प्यार होता उसे

दर्द-ए-दिल पे सितम चारसाज़ ना कर
तू दवा तो दे मगर इलाज ना कर

जाने की वजह एक थी रुकने के बहाने हज़ार मगर,
उसने ठहर जाने की ज़िद नहीं की, हम भी नहीं रुके

हिसाब की बातें कभी समझ नहीं आयीं
सबसे ज़्यादा फ़ेल ही हम गणित में हुए हैं

बेहद ज़रूरी शख़्स से बात नहीं होती
इन दिनों ख़ुद से मुलाक़ात नहीं होती

हिज्र के दिनों में रंज की शाम से,
ज़िन्दगी गुज़र रही है बड़े आराम से

जब कभी उस शख़्स की बात होती है
ज़ाफ़रान की महक गोया साथ होती है

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