फागुनों की धूप ने

गुनगुनी बातें लिखीं फिर फागुनों की धूप ने. देह तारों-सी बजी कुछ राग बिखरे तितलियों के फूल के हैं रंग निखरे गंध-सौगातें लिखीं फिर फागुनों की धूप ने मन उड़ा बन-पाखियों-सा नये अम्बर नेह की शहनाइयों के चले मंतर स्वप्न-बारातें लिखीं फिर फागुनों की धूप ने शब्द पाखी गीत के आकाश पहुंचे पतझड़ों के रास्ते … Read more

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