क्या किया आज तक क्या पाया?

मैं सोच रहा, सिर पर अपारदिन, मास, वर्ष का धरे भारपल, प्रतिपल का अंबार लगाआखिर पाया तो क्या पाया? जब तान छिड़ी, मैं बोल उठाजब थाप पड़ी, पग डोल उठाऔरों के स्वर में स्वर भर करअब तक गाया तो क्या गाया? सब लुटा विश्व को रंक हुआरीता तब मेरा अंक हुआदाता से फिर याचक बनकरकण-कण … Read more

आखिर पाया तो क्या पाया? – हरिशंकर परसाई

जब तान छिड़ी, मैं बोल उठा जब थाप पड़ी, पग डोल उठा औरों के स्वर में स्वर भर कर अब तक गाया तो क्या गाया? सब लुटा विश्व को रंक हुआ रीता तब मेरा अंक हुआ दाता से फिर याचक बनकर कण-कण पाया तो क्या पाया? जिस ओर उठी अंगुली जग की उस ओर मुड़ी … Read more

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