संध्या सुन्दरी – सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

फ़िराक़ गोरखपुरी

दिवसावसान का समय-मेघमय आसमान से उतर रही हैवह संध्या-सुन्दरी, परी सी,धीरे, धीरे, धीरेतिमिरांचल में चंचलता का नहीं कहीं आभास,मधुर-मधुर हैं दोनों उसके अधर,किंतु ज़रा गंभीर, नहीं है उसमें हास-विलास।हँसता है तो केवल तारा एक-गुँथा हुआ उन घुँघराले काले-काले बालों से,हृदय राज्य की रानी का वह करता है अभिषेक।अलसता की-सी लता,किंतु कोमलता की वह कली,सखी-नीरवता के … Read more

प्रियतम – सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

एक दिन विष्‍णुजी के पास गए नारद जी, पूछा, “मृत्‍युलोक में कौन है पुण्‍यश्‍यलोक भक्‍त तुम्‍हारा प्रधान?” विष्‍णु जी ने कहा, “एक सज्‍जन किसान है प्राणों से भी प्रियतम।” “उसकी परीक्षा लूँगा”, हँसे विष्‍णु सुनकर यह, कहा कि, “ले सकते हो।” नारद जी चल दिए पहुँचे भक्‍त के यहॉं देखा, हल जोतकर आया वह दोपहर … Read more

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