राजेश रेड्डी

इक ज़हर के दरिया को दिन-रात बरतता हूँहर साँस को मैं, बनकर सुक़रात, बरतता हूँ खुलते भी भला कैसे आँसू मेरे औरों परहँस-हँस के जो मैं अपने हालात बरतता हूँ कंजूस कोई जैसे गिनता रहे सिक्कों कोऐसे ही मैं यादों के लम्हात बरतता हूँ मिलते रहे दुनिया से जो ज़ख्म मेरे दिल कोउनको भी समझकर … Read more

अपने सच में

download the app from this link अपने सच में झूठ की मिक्दार थोड़ी कम रही कितनी कोशिश की, मगर, हर बार थोड़ी कम रही कुछ अना भी बिकने को तैयार थोड़ी कम रही और कुछ दीनार की झनकार थोड़ी कम रही ज़िंदगी! तेरे क़दम भी हर बुलंदी चूमती तू ही झुकने के लिए तैयार थोड़ी … Read more

परिंदों का घर गया – राजेश रेड्डी

यूँ देखिये तो आँधी में बस इक शजर गया लेकिन न जाने कितने परिंदों का घर गया जैसे ग़लत पते पे चला आए कोई शख़्स सुख ऐसे मेरे दर पे रुका और गुज़र गया मैं ही सबब था अबके भी अपनी शिकस्त का इल्ज़ाम अबकी बार भी क़िस्मत के सर गया अर्से से दिल ने … Read more

राजेश रेड्डी

download kavya Dhara application मोड़ कर अपने अंदर की दुनिया से मुँह, हम भी दुनिया-ए-फ़ानी के हो जाएँ क्या जान कर भी कि ये सब हक़ीक़त नहीं, झूटी-मूटी कहानी के हो जाएँ क्या कब तलक बैठे दरिया किनारे यूँ ही, फिक्र दरिया के बारे में करते रहें डाल कर अपनी कश्ती किसी मौज पर, हम … Read more

राजेश रेड्डी

शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूँ मैं जानता हूँ रेत पर वो चिलचिलाती धूप है जाने किस उम्मीद में फिर भी उधर जाता हूँ मैं सारी दुनिया से अकेले जूझ लेता हूँ कभी और कभी अपने ही साये से भी डर जाता हूँ … Read more

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