न सोच कोई, न शिकायत

न सोच कोई, न शिकायत,न विवाद कोई, न नींद।न सूर्य की इच्‍छा, न चंद्रमा की,न समुद्र की, न जहाज की। महसूस नहीं होती गरमीइन दीवारों के भीतर की,दिखती नहीं हरियालीबाहर के उद्यानों की।इंतजार नहीं रहता अबउन उपहारों काजिन्‍हें पाने की पहलेरहती थी बहुत इच्‍छा। न सुबह की खामोशी भाती हैन शाम को ट्रामों की सुरीली … Read more

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