हम तेरी चाह में – गोपालदास “नीरज”

हम तेरी चाह में, ऐ यार ! वहाँ तक पहुँचे । होश ये भी न जहाँ है कि कहाँ तक पहुँचे । इतना मालूम है, ख़ामोश है सारी महफ़िल, पर न मालूम, ये ख़ामोशी कहाँ तक पहुँचे । वो न ज्ञानी ,न वो ध्यानी, न बिरहमन, न वो शेख, वो कोई और थे जो तेरे मकाँ तक … Read more

प्रथम प्यार के चुम्बन की तरह – गोपालदास “नीरज”

फ़िराक़ गोरखपुरी

जब चले जाएंगे लौट के सावन की तरह , याद आएंगे प्रथम प्यार के चुम्बन की तरह | ज़िक्र जिस दम भी छिड़ा उनकी गली में मेरा जाने शरमाए वो क्यों गांव की दुल्हन की तरह | कोई कंघी न मिली जिससे सुलझ पाती वो जिन्दगी उलझी रही ब्रह्म के दर्शन की तरह | दाग … Read more

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