क्या क्या ज़ुल्म न ढाया लोगों ने

हम को दिवाना जान के क्या क्या ज़ुल्म न ढाया लोगों ने दीन छुड़ाया धर्म छुड़ाया देस छुड़ाया लोगों ने तेरी गली में आ निकले थे दोश हमारा इतना था पत्थर मारे तोहमत बाँधी ऐब लगाया लोगों ने तेरी लटों में सो लेते थे बे-घर आशिक़ बे-घर लोग बूढ़े बरगद आज तुझे भी काट गिराया … Read more

चुनिन्दा शेर

दिल पागल है रोज़ नई नादानी करता है आग में आग मिलाता है फिर पानी करता है इफ़्तिख़ार आरिफ़ इक बार उस ने मुझ को देखा था मुस्कुरा कर इतनी तो है हक़ीक़त बाक़ी कहानियाँ हैं मेला राम वफ़ा नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए पंखुड़ी इक गुलाब की सी है मीर तक़ी मीर … Read more

कैफ़ भोपाली के चुनिंदा शेर

Download mobile application for more poetry इधर आ रक़ीब मेरे मैं तुझे गले लगा लूँ मेरा इश्क़ बे-मज़ा था तेरी दुश्मनी से पहले गुल से लिपटी हुई तितली को गिराकर देखो आंधियों तुमने दरख़्तों को गिराया होगा आग का क्या है पल दो पल में लगती है बुझते बुझते एक ज़माना लगता है मैकशों आगे … Read more

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