मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ! – अज्ञेय

Download Kavya Dhara Application प्रिय, मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ! बह गया जग मुग्ध सरि-सा मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ! तुम विमुख हो, किंतु मैंने कब कहा उन्मुख रहो तुम? साधना है सहसनयना-बस, कहीं सम्मुख रहो तुम! विमुख-उन्मुख से परे भी तत्त्व की तल्लीनता है- लीन हूँ मैं, तत्त्वमय हूँ अचिर चिर-निर्वाण में हूँ! मैं … Read more

अज्ञेय

Download Hindi Kavya Dhara for more poetry सवेरे उठा तो धूप खिल कर छा गई थीऔर एक चिड़िया अभी-अभी गा गई थी।मैंने धूप से कहा : मुझे थोड़ी गरमाई दोगी उधार?चिड़िया से कहा : थोड़ी मिठास उधार दोगी?मैंने घास की पत्ती से पूछा : तनिक हरियाली दोगी-तिनके की नोक-भर?शंखपुष्पी से पूछा : उजास दोगी-किरण की … Read more

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