शाम है बहुत उदास

एकाकीपन का एकांत
कितना निष्प्रभ, कितना क्लांत ।

थकी-थकी सी मेरी साँसें
पवन घुटन से भरा अशान्त,
ऐसा लगता अवरोधों से
यह अस्तित्व स्वयं आक्रान्त ।

अंधकार में खोया-खोया
एकाकीपन का एकांत
मेरे आगे जो कुछ भी वह
कितना निष्प्रभ, कितना क्लांत ।

उतर रहा तम का अम्बार
मेरे मन में व्यथा अपार ।

आदि-अन्त की सीमाओं में
काल अवधि का यह विस्तार
क्या कारण? क्या कार्य यहाँ पर?
एक प्रशन मैं हूँ साकार ।

क्यों बनना? क्यों बनकर मिटना?
मेरे मन में व्यथा अपार
औ समेटता निज में सब कुछ
उतर रहा तम का अम्बार ।

सौ-सौ संशय, सौ-सौ त्रास,
आज शाम है बहुत उदास ।

जोकि आज था तोड़ रहा वह
बुझी-बुझी सी अन्तिम साँस
और अनिश्चित कल में ही है
मेरी आस्था, मेरी आस ।

जीवन रेंग रहा है लेकर
सौ-सौ संशय, सौ-सौ त्रास,
और डूबती हुई अमा में
आज शाम है बहुत उदास ।

भगवतीचरण वर्मा 

भगवतीचरण वर्मा

जन्म : 30 अगस्त 1903, शफीपुर, उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

भाषा : हिंदी

विधाएँ : उपन्यास, कहानी, कविता, नाटक, निबंध

मुख्य कृतियाँ

उपन्यास : अपने खिलौने, पतन, तीन वर्ष, चित्रलेखा, भूले बिसरे चित्र, टेढ़े मेढ़े रास्ते, सीधी सच्ची बातें, सामर्थ्य और सीमा, रेखा, वह फिर नहीं आई, सबहिं नचावत राम गोसाईं, प्रश्न और मरीचिका


कहानी संग्रह : मोर्चाबंदी, राख और चिनगारी, इंस्टालमेंट


संस्मरण : अतीत की गर्त से


नाटक : रुपया तुम्हें खा गया

आलोचना : साहित्य के सिद्धांत तथा रूप

सम्मान : साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्मभूषण

निधन : 5 अक्टूबर 1981

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