मेरे न हुए

वफ़ा की शान वो लेकिन कभी मेरे न हुए
है मेरी जान वो लेकिन कभी मेरे न हुए

उन्हीं का ज़िक्र ग़ज़ल भी वही फ़साना भी
सुख़न की आन वो लेकिन कभी मेरे न हुए

नशा है उन की सदा का कि धड़कनें मेरी
रहा गुमान वो लेकिन कभी मेरे न हुए

गुलों में रंग उन्हीं से महक महक उन से
चमन की शान वो लेकिन कभी मेरे न हुए

वही हैं शम्स ओ क़मर बहर ओ बर मेरे ‘मीता’
हैं इक जहान वो लेकिन कभी मेरे न हुए

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