एक अकेले का गाना

धन्य प्रिया तुम जागीं
ना जाने दुखभरी रैन में कब तेरी अँखियाँ लागीं ।

जीवन नदिया, बैरी केवट, पार न कोई अपना
घाट पराया, देस बिराना, हाट-बाट सब सपना ।
क्या मन की, क्या तन की, किहनी अपनी अँसुअन पागी ।। धन्य प्रिया…

दाना-पानी, ठौर-ठिकाना, कहाँ बसेरा अपना
निस दिन चलना, पल-पल जलना, नींद भई एक छलना ।
पाखी रूँख न पाएँ, अँखियाँ बरस-बरस की जागीं ।। धन्य प्रिया…

प्रेम न साँचा, शपथ न साँचा, साँच न संग हमारा
एक साँस का जीवन सारा, बिरथा का चौबारा ।
जीवन के इस पल फिर तुम क्यों जनम-जनम की लागीं ।। धन्य प्रिया…

धन्य प्रिया तुम जागीं
ना जाने दुखभरी रैन में कब तेरी अँखियाँ लागीं ।

उदय प्रकाश

इस पुस्तक को ग़ज़ल का ककहरा सीखने वालों के लिए मानक ग्रन्थ कहा जा सकता है। कई संस्करण तथा हज़ारों की संख्या में बिक चुकी यह किताब विशेषकर देवनागरी में ग़ज़ल कहने वालों के लिए किसी उस्ताद से कम नहीं है। नए सीखने वालों की तलाश इस पुस्तक पर आकर ख़त्म होती है क्योंकि अब वे स्वयं अपनी ग़ज़लों की इस्लाह कर सकते हैं। ग़ज़ल के बारे में देवनागरी में बिखरा-बिखरा बहुत कुछ ज्ञान मिल जाता है लेकिन बहुत सी अंदरूनी बातें नहीं मिलतीं जो इस पुस्तक में आ गयी हैं। यह ‘ग़ज़ल की बाबत’ का पेपरबैक संस्करण है जिसमें सभी मूल पाठों को रखा गया है।

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