मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ! – अज्ञेय

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प्रिय, मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ!
बह गया जग मुग्ध सरि-सा मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ!

तुम विमुख हो, किंतु मैंने कब कहा उन्मुख रहो तुम?
साधना है सहसनयना-बस, कहीं सम्मुख रहो तुम!
विमुख-उन्मुख से परे भी तत्त्व की तल्लीनता है-
लीन हूँ मैं, तत्त्वमय हूँ अचिर चिर-निर्वाण में हूँ!
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ!

क्यों डरूँ मैं मृत्यु से या क्षुद्रता के शाप से भी?
क्यों डरूँ मैं क्षीण-पुण्या अवनि के संताप से भी?
व्यर्थ जिस को मापने में हैं विधाता की भुजाएँ-
वह पुरुष मैं, मत्र्य हूँ पर अमरता के मान में हूँ!
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ!

रात आती है, मुझे क्या? मैं नयन मूँदे हुए हूँ,
आज अपने हृदय में मैं अंशुमाली को लिए हूँ!
दूर के उस शून्य नभ से सजल तारे छलछलाएँ-
वज्र हूँ मैं, ज्वलित हूँ, बेरोक हूँ, प्रस्थान में हूँ!
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ!

मूक संसृति आज है, पर गूँजते हैं कान मेरे,
बुझ गया आलोक जग में, धधकते हैं प्राण मेरे।
मौन या एकांत या विच्छेद क्यों मुझ को सताये?
विश्व झंकृत हो उठे, मैं प्यार के उस गान में हूँ!
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ!

जगत है सापेक्ष, याँ है कलुष तो सौंदर्य भी है,
हैं जटिलताएँ अनेकों-अंत में सौकर्य भी है।
किंतु क्यों विचलित करे मुझ को निरंतर की कमी यह-
एक है अद्वैत जिस स्थल आज मैं उस स्थान में हूँ!
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ!

वेदना अस्तित्च की, अवसान की दुर्भावनाएँ-
भव-मरण, उत्थान-अवनति, दु:ख-सुख की प्रक्रियाएँ
आज सब संघर्ष मेरे पा गए सहसा समन्वय-
आज अनिमिष देख तुम को लीन मैं चिर-ध्यान में हूँ!
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ!

बह गया जग मुग्ध-सरि-सा मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ!
प्रिय, मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ!

अज्ञेय

मूल नाम : सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन

जन्म : 7 मार्च 1911, कुशीनगर, देवरिया (उत्तर प्रदेश)
भाषा : हिंदी, अंग्रेजी
विधाएँ : कहानी, कविता, उपन्यास, निबंध, नाटक, यात्रा वृत्तांत, संस्मरण

कविता : भग्नदूत, चिंता, इत्यलम्, हरी घास पर क्षण भर, बावरा अहेरी, इंद्रधनु रौंदे हुए ये, अरी ओ करुणा प्रभामय, आँगन के पार द्वार, पूर्वा, सुनहले शैवाल, कितनी नावों में कितनी बार, क्योंकि मैं उसे जानता हूँ, सागर-मुद्रा, पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ, महावृक्ष के नीचे, नदी की बाँक पर छाया, ऐसा कोई घर आपने देखा है (हिंदी) प्रिज़न डेज़ एंड अदर पोयम्स (अंग्रेजी)
उपन्यास : शेखर : एक जीवनी, नदी के द्वीप, अपने अपने अजनबी, बीनू भगत
कहानी संग्रह : विपथगा, परंपरा, कोठरी की बात, शरणार्थी, जयदोल, ये तेरे प्रतिरूप
यात्रा वृत्तांत : अरे यायावर रहेगा याद, एक बूँद सहसा उछली
निबंध : सबरंग, त्रिशंकु, आत्मपरक, आधुनिक साहित्य : एक आधुनिक परिदृश्य, आलवाल, संवत्सर
संस्मरण : स्मृति लेखा
डायरी : भवंती, अंतरा, शाश्वती
नाटक : उत्तरप्रियदर्शी
अनुवाद : गोरा (रवींद्रनाथ टैगोर – बाँग्ला से)
संपादन : तार सप्तक (तीन खंड), पुष्करिणी, रूपांबरा (सभी कविता संकलन), सैनिक, विशाल भारत, प्रतीक, दिनमान, नवभारत टाइम्स (हिंदी), वाक्, एवरीमैंस (अंग्रेजी)

साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार

निधन : 4 अप्रैल 1987

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