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सारे जहां से अच्छास हिन्दोरस्तांष हमारा।
हम बुलबुलें हैं इसकी ये गुलिस्तांर[1] हमारा।।
गुरबत[2] में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में।
समझो वहीं हमें भी दिल हो जहां हमारा।।
परबत वो सबसे ऊँचा हमसाया आस्मांह का।
वो संतरी हमारा, वो पासबां[3] हमारा।।
गोदी में खेलती हैं इसकी हज़ारों नदियां।
गुलशन[4] है जिनके दम से रश्के3-जना[5] हमारा।।
ऐ आबे-रौदे-गंगा[6] ! वो दिन हैं याद तुमको।
उतरा तेरे किनारे जब कारवां हमारा।।
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।
हिन्दीआ हैं हम, वतन है हिन्दोस्तांत हमारा।।
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गए जहां से।
अब तक मगर है बाक़ी नामों-निशां हमारा।।
कुछ बात है कि हस्तीग मिटती नहीं हमारी।
सदियों रहा है दुश्मीन दौरे-ज़मां[7] हमारा।।
‘इकबाल’! कोई महरम[8] अपना नहीं जहां[9] में।
मालूम क्या किसी को दर्दे-निहां[10] हमारा।।
[1] बाग़
[2] विदेश
[3] रक्षक (चौकीदार)
[4] बाग़
[5] स्व़र्ग के लिए ईर्ष्याम का कारण
[6] गंगा नदी
[7] संसार चक्र
[8] भेदी
[9] संसार
[10] आन्तररिक पीड़ा